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डाॅ0 निशंक का रचना संसार:परमार्थ निकेतन माँ गंगा के तट पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन

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●साहित्य समाज की उन्नति और विकास की आधारशिला:स्वामी चिदानन्द सरस्वती

●साहित्य संस्कृति का संरक्षक और भविष्य का पथ-प्रदर्शक:निशंक

ऋषिकेश 16 अक्टूबर, परमार्थ निकेतन माँ गंगा के तट पर डाॅ निशंक का रचना संसार अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती की उपस्थिति में रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि समाज के नवनिर्माण में साहित्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। निशंक के साहित्य में वास्तविक समाज का दर्शन होता है। हितेन सह इति सष्टिमूह तस्याभावः साहित्यम् अर्थात साहित्य का मूल तत्त्व सबका हितसाधन है। निशंक ने अपने मन में उठने वाले भावों को लेखनीबद्ध कर समाज को एक दिशा देने का अद्भुत कार्य किया है। समाज और साहित्य में विलक्षण संबंध होता है क्योंकि साहित्य की पारदर्शिता समाज के नवनिर्माण में सहायक होती है।

रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि साहित्य की सार्थकता इसी में है कि उसमें मानवीय संवेदना के साथ सामाजिक अवयवों का भी उल्लेख किया गया हो। साहित्य संस्कृति का संरक्षक और भविष्य का पथ-प्रदर्शक है। हिमालय और माँ गंगा की गोद से सृजित साहित्य में मानव को श्रेष्ठ बनाने के साथ ही मानवीय एवं राष्ट्रीय हित समाहित है।

परमार्थ निकेतन माँ गंगा के तट पर आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन डाॅ निशंक का रचना संसार में सहभाग करते हेतु पधारे सभी वक्ताओं ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा कि गंगा की पवित्र और निर्मल धारा की तरह यहां पर पूज्य स्वामी जी के पावन सान्निध्य में ज्ञान की धारा भी प्रवाहित हो रही हैं यह तट वास्तव में ज्ञान, भक्ति, संस्कृति और संस्कारों के संगम का केन्द्र है।

चार सत्रों में 60 शोधपत्र हुए प्रस्तुत-

संगोष्ठी के पहले दिन चार सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें दुनियाभर के साहित्यकारों, शिक्षाविदों व शोधार्थियों के शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। उन्होंने डॉ. निशंक के साहित्य पर चर्चा की। देश के लगभग सभी राज्यों के हिन्दी प्रेमी, समीक्षक, शिक्षाविद, अनेक विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रोफेसर शोधार्थी मौजूद रहे हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर सभी अतिथियों का अभिनन्दन किया। सभी ने परमार्थ गंगा आरती में सहभाग किया।

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