श्रीमदभागवत कथा के तृतीय दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय श्रोताओं ने जाना भक्त प्रहलाद के चरित्र
1 min read
ऋषिकेश।ब्रह्मलीन पूज्य महंत अशोक प्रपन्नाचार्य महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित नौ दिवसीय श्रीमदभागवत कथा के तृतीय दिवस के अवसर पर व्यास पीठ पर विराजमान श्रीमद भागवत कथा मर्मज्ञ अंतर्राष्ट्रीय संत डा0 रामकमल दास वेदांती महाराज ने अपने श्री मुख से श्रोताओं को भक्त प्रहलाद के चरित्र का मार्मिक वर्णन किया गया।भक्त प्रह्लाद चरित्र, भरत चरित्र, पृथु चरित्र व हिरणकश्यप बध,नरसिंह अवतार व समुद्र मंथन का वर्णन किया। वेदांती महाराज ने व्याख्यान करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का केंद्र है आनंद। आनंद की तल्लीनता में पाप का स्पर्श भी नहीं हो पाता।
भागवत कथा एक ऐसा अमृत है कि इसका जितना भी पान किया जाए मन तृप्त नहीं होता है। उन्होंने कहा कि हिरणकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया, तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए व कहा कि मांगों जो मांगना है। यह सुनकर हिरनयाक्ष ने अपनी आंखें खोली और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, सदैव जीवित रहूं। उन्होंने उसे वरदान दिया। हिरणकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे।
हिरणकश्यप भगवान विष्णु को शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र को मारने के लिए अनेक छल किए लेकिन कामयाब नहीं हुआ, जब प्रहलाद की हट के सामने हिरण्यकश्यपु हार गया तो उसने प्रहलाद को मारने के लिए जैसे ही तलवार उठाया थी कि खंभा फट गया उस खंभे में से विष्णु भगवान नरसिंह अवतार का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का व धड़ मनुष्य का था। प्रगट हुए भगवान नरसिंह अत्याचारी दैत्य हिरनयाक्ष को पकड़ कर उदर चीरकर बध कर दिया।
महाराज ने ध्रुव चरित्र पर अपने व्याख्यान में कहा कि विष्णु पुराण में भक्त ध्रुव की कथा आती है, जिसने इस बात को सिद्ध किया कि कैसे एक छोटा बालक भी दृढ़ निश्चय और कठोर तपस्या के बल पर भगवान को धरती पर आने को विवश कर सकता है।
राजा उत्तानपाद की दो पत्नी थी सुनीति पहली पत्नी थी जिसका पुत्र ध्रुव था। सुनीति बड़ी रानी थी लेकिन राजा सुनीति के बजाय सुरुचि और उसके पुत्र को ज्यादा प्रेम करता था। एक बार राजा अपने पुत्र ध्रुव को गोद में लेकर बैठे थे तभी वहां सुरुचि आ गई। अपनी सौत के पुत्र ध्रुव को गोद में बैठा देखकर उसके मन में जलन होने लगी। तब उसने ध्रुव को गोद में से उतारकर अपने पुत्र को गोद में बैठाते हुए कहा,राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है।
राजसिंहासन का भी अधिकारी हो सकता है जो मेरे गर्भ से जन्मा हो। तू मेरे गर्भ से नहीं जन्मा है। यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करने की है तो भगवान नारायण का भजन कर। उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्न होगा तभी सिंहासन प्राप्त कर पाएगा।
पांच साल का अबोध बालक ध्रुव सहमकर रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया और उसने अपनी मां से उसके साथ हुए व्यवहार के बारे में कहा। मां ने कहा, बेटा ध्रुव तेरी सौतेली से तेरे पिता अधिक प्रेम करते हैं। इसी कारण वे हम दोनों से दूर हो गए हैं। अब हमें उनका सहरा नहीं रह गया। हमारे सहारा तो जगतपति नारायण ही है। नारायण के अतिरिक्त अब हमारे दुख को दूर करने वाला कोई दूसरा नहीं बचा।
मां की बातों से प्रभावित होकर 5 वर्ष का बालक वन गमन की तरफ चल पड़ा अनेक कष्टों को सहते हुए भूखे प्यासे तप करते हुए भगवान नारायण का ध्यान करते हुए उनके दर्शन कर पाया और संसार में प्रतिष्ठित हुआ जो आज भी आकाश मंडल के उत्तर दिशा में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
श्रीमद्भागवत पुराण के तृतीय दिवस श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल प्रपन्नाचार्य महाराज, हर्षवर्धन शर्मा, वरुण शर्मा,हाईकोर्ट के सेवा निवृत्त न्यायाधीश वर्तमान में मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष वी एस बिष्ट, मधुसुधन शर्मा, रविशास्त्री, दीप शर्मा, कथा में सम्पूर्ण ऋषिकेश क्षेत्र के श्रद्धालु भगवत कथा का अमृतमय रसपान करते हुए पुण्य का लाभ ले रहे थे।