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प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगांई नें किया स्वर्गीय विजयपाल सिंह रावत की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में भक्तो को संबोधित

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देहरादून : 12 नवंबर।मित्रता की बात हो तो सबसे पहले नाम अगर किसी का आता हैं तो वो है कृष्ण सुदामा। ऐसी मित्रता ना देखी न सुनी इसके बाद, अद्भुत प्रेम भाव,समर्पण भाव जो आज तो मुश्किल ही देखने हो मिलती हैं। सुदामा कृष्ण की मित्रता तो मानो फूल और भवरे की तरह हैं जो एक दूसरे पर ही मरते हैं। बिना किसी भेद भाव के बस अपने मित्र पर सब न्योछावर कर देना कृष्ण जैसे मित्र के द्वारा ही संभव हैं। कृष्ण जैसा मित्र पाकर तो सभी धन्य हो जाते हैं परंतु यहां स्थिति दूसरी थी कृष्ण सुदामा जैसे मित्र यह बात आज छटवें दिन प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगांई नें 33 पार्क रोड़ लक्ष्मण चौक देहरादून में स्वर्गीय विजयपाल सिंह रावत की पुण्य स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में भक्तो को सम्बोधित करते हुए कहा कि सामनें द्वेष पीठ पीछे गुणों का बखान करनें वाला ही मित्र है।

सुधामा जी को छुपकर चने खानें की याद पीठ पीछे गरुड़ को कहा मेरा स्वाभिमानी मित्र एक है मुझे मिलने आरहे सुधामा जी चुपचाप उठा रेयान अगर नीद टूटी तो कतई स्वीकार नहीं करेंगे आपकी उड़ान से चलना आचार्य ममगांई जी अपनी मधुर वाणी से कहतें हैं कि
सेवा का अर्थ यह है कि सर्व प्रथम माता-पिता, फिर बहन-बेटी, फिर भाई-बंधु की किसी भी प्रकार से सहायता करना ही धार्मिक सेवा है। इसके बाद अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा-सहायता करना पुण्य का कार्य माना गया है। इसके अतिरिक्त सभी प्राणियों, पक्षियों, गाय, कुत्ते, कौए, चींटी आति को अन्न जल देना। यह सभी यज्ञ कर्म में दान की चर्चा करते ममगांई ने कहा कि दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है।

मन की ग्रथियां खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। देव आराधना का दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- 1.उत्तम, 2.मध्यम और 3.निकृष्‍ट। धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए जो देता है वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह महा पुराणों में अन्नदान, वस्त्रदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही ।

धर्म की प्रशंसा करना और धर्म के बारे में सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य होता है। धर्म प्रचार में अतिधन्य वेद, उपनिषद और गीताजी के ज्ञान का प्रचार करना ही उत्तम माना गया है। धर्म प्रचारकों के कुछ प्रकार हैं। हिन्दू धर्म को पढ़ना और समझना जरूरी है। हिन्दू धर्म को समझकर ही उसका प्रचार और प्रसार करना जरूरी है। धर्म का सही ज्ञान होगा, तभी उस ज्ञान को दूसरे को बताना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म प्रचारक होना जरूरी है। इसके लिए भगवा वस्त्र धारण करने या संन्यासी होने की आवश्यकता नहीं । स्वयं के धर्म की तारीफ करना और बुराइयों को नहीं सुनना ही धर्म की सच्ची सेवा है।

इस अवसर पर कौशल्या रावत विकाश रावत जनरल टी पी एस रावत पूर्व केबिनेट मंत्री धीरेंद्र पाल रावत सोनिया रावत अनुरागिनी रावत गीता राजवंशी नितिन सुरेंद्र पँवार युद्धवीर रावत प्रांजल रावत प्रियांश विजया आर पी बहुगुणा विशनचन्द रमोला पृथ्वी सिंह नेगी आदि भक्त गण भारी संख्या में उपस्थित रहे।

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