त्रिवेणी घाट ऋषिकेश में आयोजित द्वितीय दिवस की कथा पर महाराज ने कहा श्रद्धा पूर्वक गौमाता की सेवा करना पुण्य कार्य
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*भगवान श्री राम जैसा चरित्र हेतु गौसेवा चाहिए : गोपाल मणि महाराज
ऋषिकेश।त्रिवेणी घाट ऋषिकेश में द्वितीय दिवस की कथा के दौरान महाराज ने बताया कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य को अनेक यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करने का एक माध्यम है।
बताया कि लोग गौमाता को समझते है वो आस्तिक होते है और जो लोग गौमाता को पशु समझते है वे असुर होते है जो लोग श्रद्धा पूर्वक अपने घर गौमाता की सेवा करते हैं उनको सीधे भगवान की भक्ति का फल प्राप्त हो जाता है ‘ सर्व देवमयी हि गौ ‘ गौमाता में समस्त देवी देवताओं का वास होता है बच्चा जब पैदा होता है तब उसके मुख से पहला शब्द माँ निकलता है और गौमाता भी अपने हुंकार में माँ शब्द का उच्चारण करती है अगर कोई भक्त परमात्म तक संदेह पहुंचना चाहत है तो उसे गौमाता की पूछ पकड़नी पड़ेगी।
साथ ही महाराज ने कहा कि गौमाता के गले पर हाथ फेरो तो व्यक्ति के जीवन में प्रेम बढ़ता है प्रेम का महत्व समाज और मानवता की नींव है। सच्चा प्रेम ऐसा होना चाहिए, जो केवल व्यक्तिगत सुख-संतोष तक सीमित न रहे, बल्कि पूरे समाज को प्रेरित और शुद्ध करने वाला हो।
दुर्भाग्यवश, आज का समाज गंदगी, अधर्म और अनैतिकता की ओर अधिक झुकता जा रहा है। ऐसे समय में, प्रेम, करुणा और नैतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है।
भाई-भाई के रिश्ते को राम और भरत या लक्ष्मण के रिश्ते से श्रेष्ठ उदाहरण कहीं नहीं मिलता। राम और भरत के बीच जो त्याग, समर्पण और प्रेम था, वह आज के युग में दुर्लभ होता जा रहा है। हमें उनके आदर्शों को अपनाकर अपने परिवार और समाज में प्रेम और सद्भावना को बढ़ावा देना चाहिए।
बेटे और बेटी का समाज में अपना-अपना महत्व है, लेकिन बेटी का कर्तव्य अधिक व्यापक होता है। बेटे के कंधे पर केवल अपने कुल का सम्मान होता है, लेकिन बेटी अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने ससुराल के कुल का भी सम्मान अपने आचरण से बनाए रखती है।
बेटियों को अच्छे संस्कार और नैतिक मूल्यों के साथ बड़ा करना अत्यंत आवश्यक है। एक संस्कारी बेटी न केवल अपने परिवार का गौरव बनती है, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है।
पिता के वचनों का पालन करना हर संतान का कर्तव्य है। भारतीय संस्कृति में पिता को गुरु और मार्गदर्शक के रूप में माना गया है। रामायण में श्रीराम ने पिता दशरथ के वचनों का पालन कर यह सिखाया कि माता-पिता का सम्मान और उनकी इच्छाओं का आदर करना हमारा सबसे बड़ा दायित्व है। और यह तभी संभव है जब व्यक्ति के जीवन में गौ सेवा होगी बिना गौ सेवा के संस्कार नहीं हो सकते है जितने भी संस्कार है उन सभी में गौ सेवा सबसे ज्यादा आवश्यक है
महाराज ने गंगा पूजन कर गंगा का का दूध से अभिषेक कर परम पूज्य ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के आशीर्वाद के साथ कथा का शुभारंभ हुआ ।कथा के संयोजक आचार्य राकेश ने बताया कि कथा का मुख्य उद्देश्य गौमाता को राष्ट्र माता के पद पर प्रतिष्ठा दिलवाना है कथा में मुख्य भूमिका श्रीमती चन्दना साधुक के साथ कथा में आज आर के सूरी,प्रेम चंदानी, सोबत सिंह चौहान,शोभा भंडारी, मूंगा देवी,अबल देई,राम सिंह पंवार,अमित खंडूड़ी जी आदि सम्मिलित हुए।